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फागण की फेरी क्यों ? – एक पवित्र परंपरा

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फागण फेरी यात्रा जैन धर्म की एक प्राचीन परंपरा है, जो शत्रुंजय गिरिराज (पालीताना) पर फाल्गुन सुदी तेरस के दिन आयोजित की जाती है। यह यात्रा मोक्ष और आत्मशुद्धि का मार्ग मानी जाती है।

फागण फेरी क्यों की जाती है?

🔹भगवान नेमिनाथ की पावन वाणी सुनकर श्रीकृष्ण महाराज के दो पुत्रों – शाम्ब और प्रद्युम्न को वैराग्य उत्पन्न हुआ। उन्होंने भगवान नेमिनाथ से दीक्षा ग्रहण की और उनकी आज्ञा लेकर शत्रुंजय गिरिराज पर तपस्या एवं ध्यान करने लगे। अपने सभी कर्मों से मुक्त होकर फाल्गुन सुदी तेरस के दिन भाडवा के डुंगर से मोक्ष प्राप्त किया। इन्हीं मोक्ष प्राप्त महान आत्माओं के दर्शन और वंदन के लिए लगभग 84,000 वर्षों से यह फागण फेरी यात्रा चली आ रही है।

फागण फेरी यात्रा की परंपरा और स्थल

यात्रा की शुरुआत दादा के दरबार से होती है।

रामपोल दरवाजे से निकलकर छः गाउं की यात्रा प्रारंभ होती है। इस यात्रा में 5 प्रमुख दर्शनीय स्थल (मंदिर) आते हैं—

  • 🔹 देवकी माता के छह पुत्रों का समाधि मंदिर
  • 🔸 100 पगथिया पार करने के बाद यह स्थल आता है।
  • 🔸 यहाँ भगवान श्रीकृष्ण के 6 भाई मोक्ष गए थे।
  • 🔹 उलखा जल
  • 🔸 कहा जाता है कि यहाँ आदिनाथ भगवान का पगला (पदचिन्ह) स्थित है।
  • 🔸 इसे दादा का पक्षाल स्थल भी कहा जाता है।
  • 🔹 चंदन तलावड़ी
  • 🔸 यहाँ अजितनाथ और शांतिनाथ भगवान के पगला हैं।
  • 🔸 यहाँ श्रद्धालु "नव लोग्गस" का काउस्सग या 36 नवकार मंत्र का जाप करते हैं।
  • 🔹 भाडवा का डूंगर (शाम्ब-प्रद्युम्न की देरी)
  • 🔸 यही वह स्थान है, जहाँ शाम्ब और प्रद्युम्न जी ने मोक्ष प्राप्त किया।
  • 🔸 यहाँ मंदिर में उनके पगले स्थित हैं और चैत्यवंदन किया जाता है।
  • 🔹 सिद्ध वड मंदिर
  • 🔸 यह मंदिर पालकी के अंदर स्थित है।
  • 🔸 यहाँ भगवान आदिनाथ का भव्य मंदिर स्थित है।

अन्य प्रमुख स्थल जहां चैत्यवंदन किया जाता है

  • 🔹जयतलेटी – शांतिनाथ भगवान
  • 🔹रायण पगला – आदिनाथ भगवान
  • 🔹पुंडरीक स्वामी स्थल
  • 🔹इन सभी स्थानों पर ध्यान, पूजा और वंदन करने का विशेष महत्व है।

यात्रा का महत्व और विधि-विधान

  • 🔹छः गाउं की यात्रा पूरी करने से मोक्ष मार्ग में पुण्य लाभ प्राप्त होता है।
  • 🔹यात्रा के दौरान सात्विक आहार और पैदल यात्रा का पालन किया जाता है।
  • 🔹रात में शत्रुंजय गिरिराज पर रुकना वर्जित होता है।
  • 🔹यात्रा में भाव और श्रद्धा के साथ विधि-विधान का पालन करना चाहिए।

निष्कर्ष

हम फागुनी तेरस की यात्रा करते हैं, लेकिन हमें यह भी जानना चाहिए कि यह क्यों की जाती है। इस यात्रा का गहरा ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व है। यह मोक्ष प्राप्त महापुरुषों के दर्शन, आत्मशुद्धि और धर्म साधना का एक अनूठा अवसर है। आप भी इस दिव्य यात्रा का महत्व जानें और अपने साथियों को भी बताएं। 🙏 "श्री शत्रुंजय गिरिराज की जय" 🙏

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