Great Souls

नव्वाणु यात्रा कैसे करनी चाहिए

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🔹 गिरिराज सन्मुख तलेटी, श्री शांतिनाथ जिनालय, श्रीरायण पगलिया, श्री पुण्डरीक स्वामी, श्री आदिनाथ भगवान के जिनालय में चेत्यवंदन हर दिन करना चाहिए।

🔹 नव्याणु करने वाले आराधकों को हर दिन 10 संपूर्ण 108 नवकार की नवकारवाली गिनानी चाहिए। नव्याणु यात्रा पूर्ण होने पर 1 लाख नवकार मंत्र का जाप होता है।

🔹 नववाणु करने वाले आराधकों को हर दिन दोनों समय के प्रतिक्रमण, सचित् त्याग, ब्रह्मचर्य का पालन और शक्ति हो तो एकसमा करना, भूमि पर संधारा करना,स्वयं चल कर यात्रा करनी चाहिए।

🔹 नव्वाणु यात्रा गिर यात्रा से गिरिराज की करनी होती है और घेटी पाग से 9 यात्रा यात्रा करनी होती है। इसी प्रकार से 108 यात्रा होती है।

🔹 यथाशक्ति रथयात्रा का वरघोडो रथयात्रा। 99 प्रकार की पूजा पूनी कलाकृतियां और आंगी करण कलाकृतियां।

🔹 हर दिन 3 प्रदक्षिणा और एक बार दादा के जिनालय की 108 प्रदक्षिणा सदस्याएँ।

🔹 हर दिन साथिया, 9 दिन और 9 दिन चढ़ना चाहिए।

🔹 हर दिन श्री शत्रुंजय तीर्थ आराधनार्थे नव लोगगास का कौस्सग सागरवर गंभीरा तक करना साथी।

🔹 हर दिन अष्टप्रकारी पूजा करनी चाहिए |

🔹1 बार 108 लोगों का ख्याल रखना चाहिए।

🔹 शक्ति हो तो छैविहार छठ कर के सात यात्रा करनी चाहिए। (यात्रा करने वाले तीसरे भाव में मोक्ष में जाते हैं।) पुण्डरीकजी का ध्यान करना, घेटी की पाग, रोहीशाला की पाग और शत्रुजी नदी की पाँस से एक बार तो यात्रा करनी चाहिए। बार गौ, छह गौ, तीन गौ और दोध गौ की प्रदक्षिणा देनी चाहिए। ऐसे सभी मिलकर 108' की यात्रा होती है।

🔹 नव बार नव टुक के दर्शन करना चाहिए। नवटुक में सभी ट्रंक में मुळनायक के सामने चैत्यवंदन करना चाहिए।

🔹 एक बार गिरिराज की पूजा। (टैलेटी से रोमपोळ की बारी तक जो पगलिये, प्रतिमाजी है, उसकी पूजा की जाती है। कही आस दाना हुई हो तो उसका हो तो निवारण होता है।)

🔹 हर दिन नव खमासणा नव दुहंi बोलना चाहिए।

निष्कर्ष

यदि हम स्वयं को जैन मानते हैं, तो केवल परंपराओं का पालन पर्याप्त नहीं है, बल्कि हमें जिन शासन के मूल सिद्धांतों और ग्रंथों का अध्ययन भी करना चाहिए। यह अध्ययन हमें न केवल धर्म का सही ज्ञान देता है, बल्कि आत्मकल्याण की दिशा में आगे बढ़ने का मार्ग भी प्रशस्त करता है।

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